Thursday, November 25, 2010

TANHAAYI

" मेरी तन्हाई में अक्सर जिक्र तुम्हारा हुआ करता है ..
अधूरी आँखों में हमेशा बसेरा तुम्हारा हुआ करता है...


कभी!! रास्ते पर अकेले जाने पर .....

वो पतझर के सूखे पत्तों की रुसवाई में ......
वो सूनी सड़कों की तन्हाई में ......
अरे वो चिलचिलाती धूप में परछाई में ....
प्यासी चिड़िया की तलाश की हर सुनवाई में ....


जाने क्यों ?? अक्सर जिक्र तुम्हारा हुआ करता है ........
मन चाहे या न चाहे , हमेशा सब्र का इम्तेहान हमारा हुआ करता है ....


कभी !! रात को सपने से अचानक जागने पर ...

वो धुंधली यादों के अहसास में ...
धरातल से परे .कल्पना के आगोश में ...
नींद भरी पलकों के कोरों के भीग जाने में ...
कभी खुद को तुझमें ढूँढ पाने में .....

जाने क्यों ??अक्सर जिक्र तुम्हारा हुआ करता है .....
सर्द रातों की तन्हाई में , तेरी चाहत का विश्वास हमारा हुआ करता है ..


कभी !! खुद को आईने में निहारने पर .... ..

कजराई आँखों के सूनेपन की गहराई में ...
मेरी कलायिओं की चूड़ियों की खनक की ख़ामोशी में ...
माथे की बिंदिया की लाली की पहचान की रुसवाई में .....
उलझी लटों को सुलझाने की कोशिश की हाथापाई में ...


जाने क्यों ?? अक्सर जिक्र तुम्हारा हुआ करता है ......
तेरी पहचान में खुद को तलाशने की कोशिश में .......
तन्हाई में !!! अक्सर खुद की परछाई का एहसास हमारा हुआ करता है ...."

No comments: