Wednesday, October 27, 2010

ना जाने ! कहाँ ले जाये ये समय की धार...
रोकना चाहे ये बावरी पल पल हर पल अपने मन क विचार ..

क्यों बन गयी ह दासी तेरी आवाज़ की मल्हार की ..
सुन के तेरी आवाज़ की धुन , भूल जाये ये सब कुछ बस बने मीरा जैसे श्याम की ...
न रहा है अपना अब कुछ , बस एक उम्मीद ह तेरी प्रेम की बौछार की ..
आईने से भी कर ही इनकार , अपनी ही छवि से इनकार.......


पल पल हर पल रोकना चाहे ये बावरी अपने मन के विचार ....

लगता है मेरी दुनिया मेरे जीवन में एक ही आकार ..
हाथ से छुटती रेत में ढूंढ रही अपने प्रेम का आकार ..
बहते पानी को न जाने क्यों रोकना छह रही ये मीरा बेकार ..
साथ बहने की कोशिश में भी तो नही हो पा रहा ह मिलने का स्वप्न साकार .

न जाने क्यों हर पल रोकना चाहे ये बावरी अपने मन क विचार ..
बिना तेरे जाने क्यों लगने लगा है जीने का मतलब बेकार ..
फंसती जा रही है अपने ही बनाये जाल में क्यों कर रही हैं वास्तविकता से इनकार..

पल पल हर पल रोकना चाहे ये बावरी अपने मन की विचार ..
ना जाने कहाँ ले जाये ये समाये की धार .....